अथ सन्ध्या

वैदिकी सन्ध्या तर्प्पण कय तान्त्रिकी सन्ध्या ओ तर्प्पण करी। जलमध्य सन्ध्या तर्प्पण करी तेँ जल सँ तिलक करी। उपर भय करी तँ शुद्ध वस्त्र पहिरि पूव वा उत्तर मूहें बैसि मूल मन्त्रें चन्दऩ, रक्तचन्दन, गोपी चन्दन, गङ्गैाट, गोरोचन, कुङ्कुम इत्यादि सँ यथालाभ तिलक कय। उक्त आचमन मन्त्रैं आचमन ओ श्रोत्रवन्दन कय मूलमन्त्रैं शिखा बान्हि जलमध्य त्रिकोण लिखि अंकुश मुद्रा सँ सूर्य्यमण्डल सँ ओहि जल मध्य।

ओं गंगे च यमुने चैव इत्यादि मन्त्रैं तीर्थावाहन कय।

घङ्गे च यमुने चैव गोदावरि सरस्वति। नर्मदे सिन्धु काबेरि जलेस्मिन् सन्निधिं कुरु।

12 बेरि मूल मन्त्र पढ़ि दिऐक। कुश लय 3 बेरि मूलमन्त्रें भूमिमध्य जल प्रक्षिप्त कय मूलमन्त्र पढ़ैत 7 बेरि माथपर अभिषेक करी तखन पूर्व्ववत् प्राणायाम ऋष्यादिकराङ्गन्यास कय वाम हाथ मध्य जल लय दहिन हाथैं झाँपि ‘हँ यँ वँ लँ रँ’ एहि मन्त्रैं 3 बेरि अभिमन्त्रित कय मूलमन्त्रक उच्चारण करैत खसल जल विन्दुसँ तत्त्वमुद्रा द्वारा 7 बेरि माथपर अभिषेक करी। अवशिष्ट जल दहिन हाथकै लय ओहि जलक तेजोरूप भावना कय ईडा (दक्षिणनासापुट) द्वारा शरीरान्तर्गत पापक आकर्षण कय प्रक्षालित कय कृष्णवर्ण पापरूप ओहि जलक चिन्ता कय पिङ्गला (वामनासा- पुटान्तर्गत नाड़ी) द्वारा विरेचित कय आगाँ में कल्पित वज्रशिलामध्य ‘फट्’ एहि मन्त्रें पापपुरुष रूप ओहि जलकें प्रक्षिप्त करी।

।। अथ तर्प्पणम् ।।

ॐ देवाँस्तर्प्पयामि। ॐ ऋषींस्तर्प्पयामि।

एहि मन्त्रें पूर्व्वाभिमुख भय तर्प्पण कय दक्षिणमुख भय
ॐ पितृँस्तर्प्पयामि। एहि मन्त्रें तर्प्पण कय।

पूर्व्वमुख भय
ॐगुरूँस्तर्प्पयामि।1
ॐ परमगुरूँस्तर्प्पयामि।
ॐपरापरगुरूँस्तर्प्पयामि।
ॐ परमेष्ठिगुरूँस्तर्प्पयामि।
 एवं गुरुतर्प्पण कय।

उत्तरमुख भय
ॐ साङ्गां सायुधां सवाहनां सपरिवारां सावरणां श्रीअमुकदेवीन्तर्प्पयामि स्वाहा।
अष्टोत्तरशत वा 10 वेरि वा 3 बेरि इष्ट देवताक तर्प्पण कय। आनक एक 2 बेरि। जीवत्पितृक (जनिक पिता जीवित छथि) पितृ तर्प्पण नहिं करथि। अशक्त पक्षमें इष्टदेवतामात्रकें 3 अंजलिसँ तर्प्पण कय। ओड़हूलक फूल अथवा आनो प्रशस्त फूल इत्यादि युक्त अर्थपात्र ग्रहण कय अप्राप्त पक्ष केवल जलांजलि लय।

1. विष्णु इष्टदेवताक पक्षमे ”नारदं तर्पयामि। पर्व्वतं, जिष्णुं, निशठं, उद्धवं, दारकं, विष्वक्सेनं, शैनेयं, गुरुं“ हिनका लोकनिकें 3 अञ्जलिसँ तर्प्पण करी। ओ [मूलं] अमुकदेवतान्तर्प्पयामि नमः एहि मन्त्रें विष्णु, कृष्ण इत्यादि वैष्णवकर्तृक तर्प्पण 25 वा 10 वा 3 करी। आन पुन्देवतामे ”मूलं अमुकदेवतान्तर्प्पयामि“ एहि मन्त्रें 3 बेरि।

ह्रीँ हं सः मार्त्तण्डभैरवाय शक्तिसहितायेदमर्घ्यं सूर्य्याय स्वाहा।।
तीनि बेरि अर्घ्य दय। तदुत्तर सूर्य्यमण्डल मध्य इष्टदवताक ध्यान कय पूर्व्ववत् अर्घ्य ग्रहण कय।

ॐ उद्यदादित्यमण्डलमध्यवर्त्तिन्यै नित्यचैतन्योदितायै श्रीमदमुकदेवतायै इदमर्घ्यं स्वाहा।
एहि मन्त्रें 3 बेरि अर्घ्य दी। अथवा इष्टदेवताक गायत्री पढ़ि ‘इदमर्घ्यं अमुकीदैव्यै स्वाहा एहि मन्त्रें अर्घ्य दी।

अथ तन्त्रोक्तगायत्रीमन्त्रस्वरूपाणि

कालिकायै विद्महे श्मशानवासिन्यै धीमहि तन्नो घोरे प्रचोदयात्। इति काल्याः।

ऐं भगवत्येकजटे विद्महे विकटदंष्ट्रे धीमहि तन्नस्तारे प्रचोदयात्। इत्येकजटायाः।।

महोग्रायै विद्महे तारायै धीमहि तन्नो देवी प्रचोदयात्। इति तारायाः।।

ऐं एकजटायै विद्महे देवी स्त्रीँ नीलसरस्वत्यै धीमहि ह्रीँ तारे प्रचोदयात् । इति नील सरस्वत्याः।।

ऐं त्रिपुरादेव्यै विद्महे क्लीँ कामेश्वर्य्यै धीमहि तन्नः क्लिन्ने प्रचोदयात्। इति त्रिपुरसुन्दर्य्याः।।

ऐं त्रिपुरायै विद्महे भैरव्यै धीमहि देवी प्रचोदयात्। इति भैरव्याः।।

ह्रीँ भुवनेश्वर्य्यै विद्महे आद्यायै धीमहि तन्नो देवी प्रचोदयात्। इति भुवनेश्वर्य्याः।।

वैरोचन्यै विद्महे छिन्नमस्तायै धीमहि तन्नोदेवी प्रचोदयात्। इति छिन्नमस्तायाः।।

धूँ धूमावती विद्महे विवर्ण्णादेवी धीमहि तन्नो घोरे प्रचोदयात्। इति धूमावत्याः।।

ॐ शुकप्रियायै विद्महे श्रीकामेश्वर्य्यै धीमहि तन्नः श्यामा प्रचोदयात्। इति मातंग्याः

ह्रीँ बगलामुखी विद्महे दुष्टस्तम्भिनी धीमहि तन्नो देवी प्रचोदयात्। इति बगलायाः।।

महालक्ष्मी विद्महे महाश्रियैः धीमहि तन्नः श्रीः प्रचोदयात्। इति लक्ष्म्याः।।

कात्यायन्यै विद्महे कन्याकुमारी धीमहि तन्नो दुर्गा प्रचोदयात्। इति दुर्गायाः।।

महिषमर्द्दिन्यै विद्महे दुर्गायै धीमहि तन्नो देवी प्रचोदयात्। इति महिषमर्द्दिन्याः।।

भगवत्यै विद्महे माहेश्वर्य्यै धीमहि तन्नोऽन्नपूर्णे प्रचोदयात्। इत्यन्नपूर्ण्णायाः।।

वाग्देव्यै विद्महे कामराजाय धीमहि तन्नो देवी प्रचोदयात्। इति सरस्वत्याः।।
इत्यादि गायत्री मन्त्र आओरो सब छैक से ग्रन्थान्तरमे देखि लेब। तात्पर्य्य ई जे एतबा मे जे अपना इष्टदेवता होथि तनिक गायत्रीक 1000 अथवा 108 वा 10 बेरि जप करी।

।।अथ गायत्रीक ध्यान।।

प्रातःसूर्य्यसमाभासां साक्षसूत्रकमण्डलुम्।
धरां कृष्णाजिनवृतान्ध्यायेन्मन्त्री दिवाकरे।।

मध्याह्ने शुक्लावर्णां च माहेशीन्द्विभुजां शुभाम्।
त्रिशूलधारिणीं देवीं सर्व्वपापविमुक्तये।।

सायं कृष्णसमाभासां वैष्णवीन्तां चतुर्ब्भुजाम्।
शङ्खचक्रगदापद्मधारिणीं कृष्णरूपिणीम्।।

ॐ गुह्यातिगुह्यगोप्त्री त्वं गृहाणास्मत्कृतं जपम्।
सिद्धिर्ब्भवतु मे देवि त्वत्प्रसादान्महेश्वरि।।

एहि मन्त्रें जपक समर्प्पण कय यथाशक्ति मूलमन्त्र जपि समर्प्पण कय संहार मुद्रासँ देवता कें हृदयमध्य आनि तीर्थक इष्टदेवताक नामसँ कीर्त्तन करैत पूजागृह जाइ।
।।इति प्रातःकृत्यादिगायत्रीजपान्तम्।।

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