महत्त्व

देवोत्थान एकादशी कार्तिक शुक्ल एकादशी कें देव उठान, हरिबोधिनी, देवोत्थान, प्रबोधिनी एकादशी सेहो कहल जाइत अछि। मिथिलामे एकर बड़ महत्त्व अछि। भारतवर्षमे ई एकटा प्रसिद्ध दिन रहल अछि। कालिदास सेहो मेघदूतमे एहि दिनक उल्लेख कएने छथि। मेघदूतमे यक्षक शापक अन्त होएबाक यैह दिन कहल गेल अछि- शापान्तो मे भुजगशयनादुत्थिते शार्ङ्गपाणौ। एहिसँ स्पष्ट अछि जे कालिदासक समयमे सेहो ई देवोत्थान एकादशी एकटा महत्त्वपूर्ण अवसर छल आ दिन गनबाक एकटा नियत तिथि छल।

मान्यता

मान्यता अछि जे आषाढ शुक्ल एकादशीकें भगवान् लक्ष्मीक संग क्षीरसागरमे शयन करैत छथि आ कार्तिक शुक्ल एकादशीकें निद्रा त्यागि उठैत छथि। एहि चारि मासकें चातुर्मास्य कहल जाइत अछि। दीपावलीक दिन लक्ष्मी उठैत छथि आ ओकर एगारह दिनक बाद एकादशी कें भगवान् कें उठाओल जाइत अछि।

मिथिलाक परम्परामे ई पूजा सन्ध्या कालमे आँगनमे तुलसीक वृक्ष लग होइत अछि। एतए घरक समस्त उपयोगी वस्तुक अरिपन देल जाइत अछि- जेना, बखाड़, पलंग, हर-हरवाह, खडाँउ, उखडि, ढेकी आदि बखाडक अरिपन पर पानक पात आ धान देल जाइत अछि।

मिथिलामे एकर विधानक इतिहास

श्रीदत्त उपाध्यायक ‘समयप्रदीप’मे पाँच दिनक कृत्य कहल गेल अछि

मिथिलामे म.म. चण्डेश्वरसँ प्राचीन धर्मशास्त्री श्रीदत्त उपाध्याय छथि। चण्डेश्वर हुनका कृत्यरत्नाकरमे उद्धृत कएने छथिन्ह। ओ अपन ग्रन्थ ‘समयप्रदीप’मे आषाढ शुक्लक हरिशयन एकादशी, भाद्रशुक्लक पार्श्वपरिवर्तिनी एकादशी तथा कार्तिक शुक्लक देवोत्थान एकादशीकेँ पाँच दिनक कृत्य मानैत छथि। एहि तीनू अवसर पर ओ जाहि प्रकारक उत्सवक चर्चा कएलनि ओ ध्यान देबाक योग्य अछि। नृत्य, गीत, वाद्ययंत्र, राति-जागरण, घरक सजावट आदि केँ पाबनि केर रूपमे वर्णित कयल गेल अछि। तेँ ई निश्चित अछि जे एहि पाँच दिनक पावनिमे समस्त समाजक सहभागिता छल ।

प्रत्येक दू मास पर आयोजित ई विशाल पावनि मिथिलाक संस्कृतिमे विष्णुक पूजाक प्रचलनकेँ स्पष्ट करैत अछि |

‘समयप्रदीप’क अनुसार एकादशीक दिन व्रत, भजन-कीर्तनक संग रातिमे जागरण करबाक चाही। दोसर दिन द्वादशीमे विष्णुकेँ अनेक प्रकारसँ स्नान कराए निम्नलिखित तीन मंत्र सँ उठएबाक चाही। ‘समयप्रदीप’ ग्रन्थक अनुसार तीन मंत्र निम्नलिखित अछि-

ॐ ब्रह्मेन्द्ररुद्रैरभिपूज्यमानो भवान् ऋषिर्वन्दितवन्दनीय:।

प्राप्ता तवेयं किल कौमुदाख्या जागृष्व जागृष्व सुलोकनाथ ॥

मेघा गता निर्मलपूर्णचन्द्रशारद्यपुष्पाणि मनोहराणि ।

अहं ददानीति च पुण्यहेतोर्जागृष्व जागृष्व सुलोकनाथ ॥

उत्तिष्ठोत्तिष्ठ गोविन्द त्यज निद्रां जगत्पते।

त्वयि चोत्थीयमाने तु उत्थितं भुवनत्रयम्॥

एक दिन या पाँच दिनक उत्सव ?

हरिशयनी एकादशी, पार्श्वपरिवर्तनी एकादशी आ देवोत्थान एकादशी कतेक दिन हेबाक चाही ताहि पर श्रीदत्तोपाध्याय हरिशयनी एकादशीक संदर्भमे विशेष चर्चा केने छथि | ओ कहैत छथि जे ब्रह्मपुराणक अनुसार एकादशीमे विष्णुक सुतबाक उल्लेख अछि। वराह पुराणमे द्वादशीक दिन सुतबाक उल्लेख अछि। मुदा, यमस्मृतिक अनुसार पूर्णिमाकेँ सुतबाक उल्लेख भेटैत अछि। एहि तीनूक संगति रखैत श्रीदत्त उपाध्याय अपन मत दैत छथि जे ब्रह्मपुराणमे सेहो एकादशीक दिन जे हरिशयन आदि कहल जाइत अछि, वास्तवमे आरंभक दिन थीक। ई मानि लेला पर वराह पुराण आ यम-स्मृतिक कथनसँ सेहो संगति बैसि जाएत। एहन बुझाइत अछि जे श्रीदत्त उपाध्याय कालमे मिथिलामे एहि तीनू एकादशी तिथिकेँ व्यापक रूप सँ मनएबाक परंपरा छल, तेँ सभक संगति स्थापित करबाक लेल श्रीदत्त उपाध्याय एकरा पाँच दिनक उत्सव मानलनि।

कृत्यरत्नाकरक अनुसार पाँच दिनक उत्सव

म.म चण्डेश्वर कृत्यरत्नाकरक कार्तिकतरंगमे ब्रह्मपुराणसँ उद्धृत करैत कहैत छथि जे कार्तिक शुक्ल पक्षक एकादशी तिथिक रातिमे विष्णुकें जगएबाक चाही। चण्डेश्वर एहि देवोत्थान एकादशीकें पाँच रातिक उत्सव मानैत एकर विस्तृत वर्णन कएने छथि। एही पाँच दिनकेँ ,ओ वकपञ्चक कहैत एहिमे मांसादिभक्षणक निषेध करैत छथि। हुनक अनुसार भरि राति गीत-नाद आदिसँ जागरण कए प्रातःकाल द्वादशी तिथिमे घृत आदिसँ स्नान प्रतिमाक अभिषेक, उबटन, आदि दए स्नान कराबी आ तखनि विस्तृत विधिसँ पूजा कए निम्नलिखित मन्त्रसँ हुनका जगाबी।

ब्रह्मेन्द्र-रुद्रैरभिनूयमानो भवानृषिर्वन्दित-वन्दनीयः।
प्राप्ता तवेयं किल कौमुदाख्या जागृष्व जागृष्व च लोकनाथ।।

मेघा गता निर्मलपूर्णचन्द्रशारद्यपुष्पाणि मनोहराणि।
अहं ददानीति च पुण्यहेतोर्जागृष्व जागृष्व च लोकनाथ।।

स यज्ञो यत्र भासि त्वं सर्व्वयज्ञानुभवोऽसि यज्ञाः।

यजन्ति वार्तासु विशुद्धसत्त्वाः प्रबुध्य जागृष्व च लोकनाथ।।

एतए चण्डेश्वर लिखैत छथि जे अंतिम श्लोक यद्यपि ‘समयप्रदीप’ आदि ग्रन्थमे उल्लिखित नहिं अछि मुदा वराहपुराण आ ‘कृत्यसमुच्चय’ मे भेटैत अछि तेँ एतहु लेल गेल अछि।

द्वादशीसँ पूर्णिमा धरिक प्रत्येक दिनक कृत्यक उल्लेख एतए ब्रह्मपुराण आ वराहपुराणक अनुसार कएल गेल अछि।

पूजाक विधान

अष्टदल कमलक अरिपन पर पीढी राखि ओहि पर गोसाउनिक (तामामे राखल धान जाहि पर लक्ष्मीक नित्य पूजन होइत अछि,) संग विष्णुक पूजा होइत अछि। एहि लेल गोसाउनिक सीर पर राखल ओहि तामाकें बाहर आनल जाइत अछि। तें गोसाउनिक सीरसँ आँगनक पूजा-स्थान धरि अरिपन पडैत अछि। ओ अरिपन आँगनक पूजास्थल पर बनाओल गेल अष्टदलकमलक अरिपनक संग जुडल रहैत अछि। एकर ई अर्थ थीक जे गोसाउनिक सीर पर सँ तामामे राखल ओहि लक्ष्मीकें पूजास्थल धरि आनल जाइत अछि आ विष्णुक संग हुनक पूजा कएल जाइत अछि।

अरिपन

देवोत्थान एकादशीमे अरिपन
देवोत्थान एकादशीक अरिपनक एक आदर्श रूप। चनौर ग्रामक वासी डा. अरविन्द कुमार सिंह झाक आदरणीया माताक हाथक बनाओल। साभार : डा. झाक फेसबुकसँ।

खडाम आ पलंग भगवानक पूजाक लेल कुसियारक छीप वला पाँच टा भागक उपयोग होइत अछि। ओही दिन काटल खढसँ लपेटि पाँच खुट्टावला घर बनैत अछि। एक खुट्टा बीचमे आ चारि टा चारू कोन पर लगाए सभटाकें ऊपर बान्हि देल जाइत अछि। पीढी पर ई घर राखि ओहिमे पूजा होइत अछि आ पूजाक बाद एहि घरकें पानिमे भसाओल नै जाइत अछि। ओकरा घरक चार पर राखि देल जाइत अछि।

नैवेद्य

एहिमे अन्नक व्यवहार एकदम वर्जित अछि। अल्हुआ, भेंटक चाउर, सिंहार, आरु, खम्हारु, आदि कन्द-मूल-फल, मखान, दूध, दही एवं सामयिक फल नैवेद्य होइत अछि। एतेक धरि जे एहि पूजामे भगवान् कें यव (जौ) चढौलो नै जाइत छनि।

पूजाविधि-

विष्णु आ लक्ष्मीक पूजा कए तथासम्भव उपचार सँ होइत अछि। एकर पूजाविधिमे कोनो विशेष विधान नहिं छैक। मुदा एहि पूजामे तिल आ जौक व्यवहार नहिं होइत अछि से वृद्ध-परम्परासँ देखैत आबि रहल छी।
पूजा कए पीढीक चारू कोन पर दीप जराओल जाइत अछि। तखनि कमसँ कम चारि गोटे जे व्रत कएने छथि से निम्नलिखित मन्त्र पढैत तीन ओहि पीढी समेत भगवान् कें उठबैत छथि।।

एहिमे प्रथम दू मन्त्र बैसि कए आ अन्तिम मन्त्र पढबाक बेर उठएबाक परम्परा देखैत छी।

मन्त्र-

ब्रह्मेन्द्र-रुद्रैरभिवन्द्यमानो भवानृषिर्वन्दित-वन्दनीयः। 
प्राप्ता तवेयं किल कौमुदाख्या जागृष्व जागृष्व च लोकनाथ।।
मेघा गता निर्मलपूर्णचन्द्रशारद्यपुष्पाणि मनोहराणि।
अहं ददानीति च पुण्यहेतोर्जागृष्व जागृष्व च लोकनाथ।।
उत्तिष्ठोत्तिष्ठ गोविन्द त्यज निद्रां जगत्पते।
त्वया चोत्थीयमानेन उत्थितं भुवनत्रयम्।।
ऊपर लिखल मन्त्रक audio

पूजा सम्पन्न कए गृहस्थ रातिमे भगवानकें चढाओल गेल फलसँ पारणा करैत अछि। मिथिलामे बेसी ठाम इएह देखैत छी। एतए वृद्ध-परम्परासँ देखैत छी जे पारणा करबाक आसन पर बैसि चरणोदक लेल जाइत अछि, पूजा-स्थान पर नहिं। कारण जे एहिमे दोसर बेर किछु ग्रहण नै करबाक चाही।

मुदा बहुत ठाम भरि राति नृत्य-गीतादिक संग जागरण कए प्रातःकाल नित्यक्रिया कए तुलसीदलसँ पारणा करबाक सेहो परम्परा कतहु कतहु वैष्णव लोकनिमे सुनैत छी।

एकर अगिला दिन द्वादशीकें तुलसी-विवाह होइत अछि जे मिथिलामे प्रचलित नहिं अछि, मुदा विभिन्न ठाकुरबाडीमे एकर आयोजन होइत अछि।

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