संस्कृत भाषामे लिखल धर्मशास्त्रीय ग्रन्थ सभमे पुत्र, पुत्रवती, पुत्रवान् आदि शब्दसँ भारतीय समाजमे लिङ्गभेदक प्रसंग उठाए एहि बात पर जोर दए रहल अछि जे जतए जतए पुत्र शब्दक प्रयोग अछि ओतए पुत्रीक कोनो चर्चा नै भेल अछि आ ई नारी समाजक प्रति दुर्भावनाक प्रसंग थीक।

उदाहरणक लेल जितिया पाबनिमे सात टा बेटाक उल्लेख भेलाक बादो एकोटा बेटीक उल्लेख नहि भेलाक कारणें ई मानैत छथि जे माय अपन बेटीक लेल किछु नै करैत छथि, केवल बेटाक लेल करैत छथि।

ई संदेह थीक। वास्तवमे पुत्र, सुत, शिशु, वत्स, आदि शब्दक प्रयोग व्यापक अर्थमे भेल अछि जाहिसँ पुल्लिंग आ स्त्रीलिंग दूनूक बोध होइत छैक। एही पुत्र शब्दसँ स्त्रीलिंग मे पुत्री शब्द बनैत छैक। विशेष लिंगक बोध करएबाक लेल स्त्रीप्रत्ययक विधान छैक, मुदा जतए लिंगक विवक्षा (कहबाक इच्छा) नै रहए ओतए पुत्र शब्दक व्यवहार केलासँ पुत्र आ ओकरे स्त्रीलिंग शब्द पुत्री, दूनूक बोध होइत छैक। आ पुत्र शब्दक प्रयोग सन्ताक अर्थमे होइत छैक।

आब हमरालोकनि देखी जे एहि प्रकारक प्रयोग संस्कृतक ग्रन्थमे केना भेल अछि। नारीक सन्दर्भमे बन्ध्या नाराक विपरीत अर्थमे पुत्रवती नारीक व्यवहार भेल अछि। बन्ध्या शब्दसँ स्पष्ट अछि- बाँझ, जनिका ने तँ बेटिए हो ने बेटा हो। एकर विपरीत अर्थमे पुत्रवती कहल गेल अछि जाहिसँ सन्तानवती, प्रजावती आदि अर्थक बोध होइत अछि।

तस्यां या कुरुते स्नानं नारी वंध्या द्विजोत्तमाः॥
अन्योऽपि कुरुते स्नानं सर्वतीर्थफलं लभेत्॥७॥
धनं धान्यं तथा पुत्रान्राज्योत्थं च सुखं लभेत्॥८॥
या नारी दुर्भगा वन्ध्या साऽपि पुत्रवती भवेत्॥

जेना कौआ, मयूर, बगड़ा आदि एके शब्दसँ दूनू लिंगक बोध होइत अछि। तहिना पुत्र, सुत आदि शब्दसँ दूनू लिंगक बोध होइत छैक।

संगहि बेटी परिवारक अंग ताबते धरि रहैत छथि, जा धरि हुनक विवाह नै भए जाइत अछि। विवाहक बाद बेटीक सासुर गेला पर हुनक गोत्र बदलि जाइत अछि, आ ओ अपन नैहरक कौलिक परम्परासँ कटि अपन सासुरक परम्परामे बँधा जाइत छथि। यैह आदर्श रूप थीक।

तकर बादो बेटीक लेल नैहरमे जे स्थान रहैत अछि तकरा लेल हमरालोकनिकें “जामि” शब्दक प्रयोग देखबाक चाही। जामि शब्दक प्रयोग ओही अर्थमे भेल अछि जाहि अर्थमे मैथिलीमे सुआसिन शब्द अछि। बृहज्जातक मे वराहमिहिर जामि शब्दक जे प्रयोग करैत कहैत छथि जे जाहि घरमे सुआसिन कष्ट मे रहथि ओ घर समूल नाश भए जाइत अछि। आ जतए ओ प्रसन्न रहैत छथि ओतए सभ नीके होइत अछि।

शोचन्ति जामयो यत्र विनश्यत्याशु तत्कुलम्। 
न शोचन्ति तु यत्रैता वर्धते तद्धि सर्वदा।

यैह कारण थीक जे मिथिलामे सुआसिनक अएला पर हुनक पएरमे तेल लगेबाक परम्परा आइयो अछि।

संगहि जखनि सुआसिनक बिदागरीक काल हुनक सवारी पर हुनक पएर धुअल जाइत अछि आ हुनका पानि पिआए बिदा कएल जाइत अछि। ई दूनू टा व्यवहार बेटीक प्रति सम्मान-प्रदर्शन थीक।

तें हमरालोकनिक परम्परा पर ई आरोप लगाएब जे एतए लिंग-भेद कएल गेल अछि, भ्रम मात्र थीक।

बेटा आ बेटीक दूनूक सम्मान अपन-अपन स्थान पर देल गेल अछि।

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