मैथिल साम्प्रदायिक दुर्गापूजा हवन विधि

नवमी दिन श्री दुर्गासप्तशतीक नौ अथवा दश आवृत्ति समाप्त कए हवन करी।

एहि सम्बन्धमे विद्यापति दुर्गाभक्तितरङ्गिणी मे लिखैत छथि जे अपन शाखाक अनुसार अर्थात् वाजसनेयी अथवा छन्दोगक परम्पराक अनुसार अग्निस्थापन करी। ब्रह्माक वरण कए आधार होम आ आज्यभाग होम कए जयन्ती मङ्गला काली इत्यादि मन्त्रसँ 108 आहुति दी।

जयन्ती मङ्गला काली भद्रकाली कपालिनी। 
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वधा स्वाहा नमोऽस्तु ते।

(एतय अनदेसी पाठक कारणें बहुतो गोटे कें “स्वाहा स्वधा नमोऽस्तु ते” पढबाक हिस्सक लागि गेल छनि। मुदा मैथिल सोचथु जे ओ विद्यापतिक देल पाठ मानताह अथवा अनकर? )

अग्निस्थापना- 

विद्यापतिक अनुसार विधानपूर्वक अग्निस्थापना करी। जेना उपनयनमे अग्निस्थापनाक विधान कएल गेल अछि, ओही पद्धतिक अनुसरण करी।

साकल्य-निर्माण- 

(पहिल विकल्प) 1. तिल 2. अरबा चाउर 3. जौ (यव), 4 शर्क्करा (शक्कर)। तिलक आधा चाउर, तकर आधा जौ मिलाबी। जौ के आधा शक्कर दियैक आ सभटा मिलाए जतेक हेतैक ओकर आधा घृत मिलाबी।

साकल्य-निर्माण- 

(दोसर विकल्प) पायस (खीर) मे घी, मधु आ तिल मिला कए 108 बेर हवन करी। खीरसँ हवन करबामे ई ध्यान राखी जे ओही मण्डपमे शुद्धतापूर्वक खीर बनाओल गेल हो। एक ठाम बनाकए ओकरा ऊघि मण्डपमे लए जाए ओहिसँ हवन अनुचित थीक। खीर सिद्धान्न थीक तें बटियारी लगबैत (बाट नीपैत अथवा पवित्र कए पानि छीटैत) ओकरा हवन स्थान धरि लए जेबाक चाही।

हवनक मन्त्र- 

सप्तशतीक दश आवृत्ति कए ओकर प्रत्येक मन्त्रसँ हवनक परम्परा सेहो रहल अछि।

दुर्गासप्तशतीक कोन कोन मन्त्रसँ हवन नहि होइत अछि?

दुर्गासप्तशतीक चारिम अध्यायक “शूलेन पाहि नो देवि” सँ तैरस्मान् रक्ष सर्वतः धरि कुल चारि मन्त्रसँ हवन नहि होइत अछि।

एगारहम अध्याय मे “सर्वस्वरूपे सर्वेशे” सँ “चण्डिके त्वां नता वयम्” धरि पाँच मन्त्रसँ हवन नै करी।

ई कवच मन्त्र कहबैत अछि, एहिसँ नवो मन्त्रसँ आहुति वर्जित अछि। दूनू ठाम मन्त्रक पाठ कए ओतेक संख्या मे “दुर्गे दुर्गे रक्षिणि स्वाहा” एहि मन्त्र सँ आहुति दी।

हवन मन्त्रक दोसर विकल्प

दोसर विकल्प अछि जे “जयन्ती मंगला काली” इत्यादि मन्त्रसँ 108 आहुति दी। विद्यापति एकर उल्लेख केने छथि।

इएह विधान बंगालक परम्परामे रघुनन्दन सेहो दुर्गार्चन मे कएने छथि। हुनक ई दुर्गार्चन पद्धति हुनक ग्रन्थ स्मृतितत्त्वमे प्रकाशित अछि। ओ विशेष रूपसँ लिखैत छथि जे एहि हवनमे वलद नामक अग्निक आवाहन करी। हाथक बारह पोरसँ अथवा काँच धात्रीक माला बनाए ओहिसँ गनि कए बेलपात सहित तिल (अर्थात् साकल्य) सँ दैवतीर्थ सँ उत्तान हाथें हवन करी।

हवनक मन्त्रक रूपमे विद्यापतिए जकाँ ओहो जयन्ती मङ्गला काली इत्यादि मन्त्रक उल्लेख कएने छथि। अतएव एहि मन्त्रसँ हवन प्राचीन कालमे व्यापक क्षेत्रमे होइत छल से जानी।

दुर्गाभक्तितरङ्गिणीमे हवन विधि
बंगालक परम्पराक उल्लेख करैत रघुनन्दन भट्टाचार्य

विद्यापति आ रघुनन्दनक मतें अग्निस्थापन सविधि करी अर्थात् ब्रह्मवरण, कुशकण्डिका, प्रणीतापात्र, प्रोक्षिणी पात्रक स्थापना सेहो करी। अपन शाखाक उपनयन पद्धतिक अग्निस्थापना विधिक अनुसरण करी।

मुदा एक व्यक्ति द्वारा कएल गेल संक्षिप्त होममे संक्षिप्त अग्निस्थापन आगम विधिसँ कए हवन कएल जा सकैत अछि।

जँ सामूहिक रूपसँ विशेष होम हो आ जतए एक सँ अधिक व्यक्ति हवन कएनिहार होथि, आहुतिक संख्या 1000 सँ अधिक हो ओतए वैदिक विधिसँ अग्निस्थापन करबाक चाही।

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