मिथिलाक्षर पढ़बाक अभ्यास-माला 1
आनक लिखल मिथिलाक्षरकेँ पढ़बाक अभ्यास आवश्यक अछि, तेँ ई अभ्यास-माला हम आरम्भ कएल। एहि एक पत्र केँ पढ़ि कॉमेंट बॉक्समे अपन पाठ लीखि पठाबी हम ओकरा देखि उचित जानकारी देब।Continue Reading
कैथी, तिरहुता आ मिथिलाक्षर
ई भ्रम स्वयं पसरल अथवा पसारल गेल- पसारल जा रहल अछि, से खोजक विषय थीक। जँ जानि बूझि कए ई भ्रम पसारल जा रहल अछि तँ एकरा मिथिला आ मैथिलीक विरुद्ध बड़ पैघ षड्यंत्र बुझू।Continue Reading
कैंसर का ज्ञान- डा. धीरेन्द्र नारायण सिन्हा
छठ का अर्घ्य- पण्डितजी की जरूरत क्यों नहीं?
सच्चाई यह है कि छठपर्व की भी पूरे विधान के साथ पुरानी पद्धति है, पूजा के मन्त्र हैं, पूजा के समय कही जानेवाली कथा है। संस्कृत में वेद तथा पुराण से संकलित मन्त्र हैं। मगध में ङी ऐसी पद्धति है, मिथिला में तो बहुत पुराना विधान है। म.म. रुद्रधर ने प्रतीहारषष्ठीपूजाविधिः के नाम इसकी पुरानी विधि दी है। वर्षकृत्य में यह विधि उपलब्ध है।Continue Reading
पटना की दीपावली
पटना में मिली-जुली संस्कृति है। मिथिला की संस्कृति के लोग भी रहते है। सब मिलजुल कर दीपावली मनाते रहे हैं। मिथिला के लोग गोधूलि वेला में पूजा करते हैं, उनकी वही परम्परा है। सन्ध्या होते ही दीप जलाते हैं, विशेष पूजा करते हैं तथा मखाना का खूब उपयोग करते हैं।Continue Reading
अयोध्या में जन्मभूमि मन्दिर में मूर्ति कैसी थी?
यह एक प्रामाणिक उल्लेख मिलता है, जिससे स्पष्ट होता है कि जन्मभूमि पर प्राचीन काल में माता कौसल्या की गोद में बैठे श्रीराम की मूर्ति वहाँ थी। आज भी यदि वैसी ही मूर्तियाँ लगे तो श्रीराम जन्मभूमि अपनी खोयी हुई गरिमा को पा जाये।Continue Reading
मैथिली लोकगीतों में नारी
जनक-याज्ञवल्क्य की धरती मिथिला एक ओर यजुर्वेद एवं शतपथ-ब्राह्मण की वैदिक परम्परा की भूमि रही है तो दूसरी ओर आगम-परम्परा में शक्ति-पूजन के लिए विख्यात रही है।Continue Reading
सीताजी के वरदान से होती है हनुमानजी की पूजा
श्रीराम के बगल में बैठी हुई सीताजी ने इससे आगे का आशीर्वाद दे डाला कि हनुमानजी देवता के रूप में पूजित होंगे। जहाँ हनुमानजी का स्मरण किया जायेगा, वहाँ पेड़ों पर अमृत के समान फल लगेंगे, स्वच्छ जल का प्रवाह बहता रहेगा।Continue Reading
वाल्मीकि रामायण का आलोचनात्मक संस्करण
भण्डारकर ओरियण्टल रिसर्च इंस्टीच्यूट, पूना से वाल्मीकीय रामायण का आलोचनात्मक संस्करण प्रकाशित हुआ जो पाठ भेदों को समझने के लिए स्थानीय प्रक्षेपों को, अपपाठों को जानने के लिए महत्त्वपूर्ण कार्य है।Continue Reading
वाल्मीकि रामायण का सबसे पुराना प्रकाशन
विलियम कैरी एसियाटिक सोसायटी ऑफ बंगाल के सदस्य थे। वाल्मीकि रामायण का प्रकाशन गद्यानुवाद के साथ किया, जो 3 खण्डों में सेरामपुर प्रेस से 1806-07 में प्रकाशित हुआ।Continue Reading