वाल्मीकि रामायण प्रमुख दो पाठ हैं- औत्तराह पाठ तथा दाक्षिणात्य पाठ। उत्तर भारत का पाठ औत्तराह कहलाता है तथा दक्षिण भारत का पाठ दाक्षिणात्य।

औत्तराह पाठ के भी तीन अंतर्वर्ती स्वरूप हैं- पूर्वोत्तर का पाठ, पश्चिमोत्तर पाठ, पश्चिम पाठ।

पूर्वोत्तर का पाठ नेपाल, मिथिला, और बंगाल में प्रचलित हैं। इन तीनों का पाठ एक है। जहाँ कहीं भी थोड़ा बहुत पाठान्तर दिखायी देता है, उसमें भी अर्थ का अन्तर नहीं है।

पश्चिमोत्तर का पाठ काश्मीर का पाठ माना जा सकता है। इस क्षेत्र से शारदा लिपि की प्राचीन पाण्डुलिपियाँ मिली है। इस पाठ का प्रकाशन लाहौर से हुआ है, जो रामायण का लाहौर संस्करण कहलाता है। इसके प्रमुख संम्पादक पं. भगवद्दत्त रहे हैं।

रामायण के दाक्षिणात्य पाठ तथा काश्मीर के पश्चिमोत्तर पाठ का मिश्रित रूप हमें राजस्थान तथा गुजरात  के क्षेत्र में मिलता है, इसे विद्वानों ने औत्तराह पाठ का पश्चिमी पाठ माना है।

1846 ई. में विलियम वॉन श्लेगल ने वाल्मीकि रामायण के दो काण्डों बालकाण्ड एवं अयोध्याकाण्ड का सम्पादन लैटिन अनुवाद के साथ किया। यद्यपि उन्होंने पश्चिमोत्तर पाठ को मुख्य आधार माना किन्तु कुछ स्थलों पर जहाँ किसी प्राचीन विद्वान् ने उसे महिमामण्डित किया था, बंगाल से प्राप्त पाठ को भी जोड़ दिया। इस प्रकार श्लेगल का यह संस्करण किसी एक पाठ का प्रतिनिधि संस्करण नहीं रह सका। रामायण का अंग्रेजी काव्यानुवाद करनेवाले ग्रिफिथ ने श्लेगल के पाठ को बनारस का पाठ माना है।

इस सम्पादन के दोनों काण्ड मूल रूप से यहाँ पढे जा सकते हैं।

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