वाल्मीकि रामायण के प्रमुख दो पाठ हैं-

  • औत्तराह पाठ -उत्तर भारत से उपलब्ध पाण्डुलिपियों के आधार पर सम्पादित पाठ
  • दाक्षिणात्य पाठ– दक्षिण भारत में उपलब्ध पाण्डुलिपियों के आधार पर सम्पादित पाठ

औत्तराह पाठ के भी तीन अंतरवर्ती स्वरूप हैं-

  • पूर्वोत्तर का पाठ- नेपाल, मिथिला, आसाम एवं बंगाल की पाण्डुलिपियों के आधार पर संपादित एवं प्रकाशित पाठ।
  • पश्चिमोत्तर पाठ – काश्मीर, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, हरियाणा का पाठ।
  • पश्चिमी पाठ- उत्तर भारत एवं दक्षिण भारत में प्रचलित पाठ का मिश्रित रूप।

पूर्वोत्तर का पाठ नेपाल, मिथिला, आसाम बंगाल तथा उड़ीसा में प्रचलित हैं। इन सभी स्थानों से प्राप्त पाण्डुलिपियों में एक ही प्रकार का पाठ एक है। जहाँ कहीं भी थोड़ा बहुत पाठान्तर दिखायी देता है, उसमें भी अर्थ का अन्तर नहीं है। यह सबसे महत्त्वपूर्ण पाठ है। एक तो इसकी सबसे पुरानी हस्तलिखित प्रति मिलती है तथा कथा के प्रवाह में कहीं टूटता नहीं है। मध्यकाल में वाल्मीकीय रामायण में जो श्लोक जोड़े गये हें, उनसे यह संस्करण अछूता है। इसकी एक पाण्डुलिपि 1020 ई. की है, जो नेपाल दरबार लाइब्रेरी में सुरक्षित है। इसकी माइक्रोफिल्म प्रति ओरियण्टल रिसर्च इन्स्टीच्यूट, बडौदा में भी है, जिसका उपयोग वहाँ से प्रकाशित वाल्मीकि रामायण के आलोचनात्मक संस्करण के प्रकाशन किया गया था। बंगाल से प्राप्त पाण्डुलिपि के आधार पर गैस्पेयर गोरेशियो ने इसका संपादन कर इटालियन अनुवाद के साथ पेरिस से प्रकाशित किया था। गोरेशियो का संस्करण वाल्मीकि रामायण के पूर्वोत्तर पाठ का प्रतिनिधित्व करता है।

विशेष अध्ययन के लिए महावीर मन्दिर, पटना द्वारा प्रकाशित धर्मायण की अंक संख्या 99, वाल्मीकि-रामायण विशेषांक का अवलोकन कर सकते हैं-

पश्चिमोत्तर का पाठ मूलतः काश्मीर का पाठ माना जा सकता है। इस क्षेत्र से शारदा लिपि की प्राचीन पाण्डुलिपियाँ मिली है। इस पाठ का प्रकाशन लाहौर से हुआ है, जो रामायण का लाहौर संस्करण कहलाता है।

रामायण के दाक्षिणात्य पाठ तथा काश्मीर के पश्चिमोत्तर पाठ का मिश्रित रूप हमें राजस्थान तथा गुजरात  के क्षेत्र में मिलता है, इसे विद्वानों ने औत्तराह पाठ का पश्चिमी पाठ माना है तथा दाक्षिणात्य पाठ के सन्दर्भ में औदीच्य पाठ माना है।

गोरेशियो के संस्करण का मूल पाठ पाँच खण्डों में प्रकाशित है। जो काण्ड पढना हो, उस पर क्लिक कर पढ सकते हैं तथा इस डाउनलोड कर रख भी सकते हैं। यहाँ मूल मात्र है। इसका हिन्दी अनुवाद अभी तक नहीं हुआ है। कोई उत्साही विद्वान् इसका अनुवाद कर सकते हैं।

  1. वाल्मीकि रामायण आदिकाण्ड (बालकाण्ड) सम्पूर्ण तथा अयोध्याकाण्ड 1-9 सर्ग तक
  2. अयोध्याकाण्ड, सर्गसंख्या 10 से127 तक सम्पूर्ण।
  3. अरण्यकाण्ड सम्पूर्ण एवं किष्किन्धाकाण्ड 1-33 सर्ग तक
  4. किष्किन्धाकाण्ड सर्ग संख्या 34 से अंत तक एवं सुन्दरकाण्ड सम्पूर्ण
  5. युद्धकाण्ड सम्पूर्ण
  6. उत्तरकाण्ड सम्पूर्ण

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *