अन्धराठाढीक तीन अभिलेख

[दिनांक 16 एवं 17 मार्च, 2018 कें अन्धराठाढी में वाचस्पति-महोत्सव मनाओल गेल। एहि अवसर पर दिनांक 17 मार्च कें डा. फणीकान्त मिश्रक अध्यक्षतामे इतिहास एवं पुरातत्त्व सत्र मे पढल गेल आलेख]

मिथिलामे अन्धराठाढी पुरातात्त्विक दृष्टिसँ महत्त्वपूर्ण अछि। एकर नामकरणसँ सूचित होइत अछि जे आन्ध्र-प्रदेश अर्थात् कर्णाटसँ आएल विजेताक ई एकटा स्थल छल। एहि घटनाकें नान्यदेवक संग जोडल जाइत अछि आ एहि गाममे कमलादित्यस्थान सँ उपलब्ध विष्णुक प्रतिमाक मूर्तिलेखक आधार पर एकरा सिद्ध कएल जाइत अछि जे ओ व्यक्ति नान्यदेव छलाह जे एतय आबि अपन सैन्य शिविर लगोल आ मिथिलाक विजययात्रा प्रारम्भ कएल।

एहि गामसँ प्राप्त दूटा मूर्तिलेखक अध्ययन एतय अपेक्षित अछि। पहिल अभिलेख कमलादित्यस्थान सँ प्राप्त मूर्तिलेख थीक। ई वर्तमानमे खण्डित विष्णुमूर्तिक पादपीठ पर उत्कीर्ण अछि। लेख पर्याप्त खण्डित भए चुकल छैक तें पढबामे अधिक स्पष्ट नै अछि। एकर पहिल पाठ म.म. परमेश्वर झा मिथिलातत्त्वविमर्श मे एहि रूपमे देने छथि-

श्रीमन्नान्यपतिर्जेता गुणरत्नमहार्णवः।

यत्कीर्तिजनितो विश्वे द्वितीयः क्षीरसागरः।।1।।

मन्त्रिणातस्य नान्यस्य (मन्त्र-मन्त्र) नवरङ्गाब्जभानुना।

तेनायं कारितो देवः श्रीधरः श्रीधरेण च।

(दरभंगा संस्करण, 1949, प. सं. 104)

एहि लेख कें कतेको बेर पढबाक प्रयास कएल गेल अछि। किछु वर्ष पूर्व दरभंगाक श्रद्धेय सत्यनारायण झा सत्यार्थी एकटा नीक कलाकार आ फोटोग्राफरक रूपमे एहि शिलालेखकें साफ कए एकर प्रिंट तैयार कएलनि जे हुनक पुस्तक मिथिलाक्षरक उद्भव ओ विकास मे प्रकाशित भेल।

फोटोग्राफी आ आलेखन- सत्यनारायण सत्यार्थी

एहिसँ पूर्व एहि शिलालेखक प्रामाणिक इंक-स्टम्पेज काशी प्रसाद जायसवाल रिसर्च इन्सिटीच्यूटक शोध पत्रिकामे आ पुनः पं. राजेश्वर झाक पुस्तक मिथिलाक्षरक उद्भव ओ विकास मे निगेटिव प्रिंटक संग प्रकाशित भए चुकल छल

जेकर अवलोकन केलाक बाद दूनू कें मिलाए पढला पर म.म. परमेश्वर झाक पाठ मे संशोधनक अवसर आएल। एकर मुख्य स्थान अछि दोसर पंक्तिक 9-12 अक्षर जतए पाठक कारणें ऐतिहासिक साक्ष्य पर असरि पडैत अछि।

एहि चारि अक्षर कें म.म. परमेश्वर झा ‘नवरङ्गा’ पढने छथि आ तें ओ श्रीधरदासक नाम लैत हुनका रङ्गवाली कायस्थ मानने छथि। बादमे सत्यनारायण झाक फोटोग्राफीक आधार पर एकरा ‘क्षत्रवंशा’ पढल गेल आ एहि आधार पर श्रीधर कें क्षत्रिय मानल गेल। किन्तु सत्यनारायण झाक फोटोग्राफी हुनका द्वारा ओहि पर कलम चला देबाक कारणें अधिक प्रामाणिक नहि रहि गेल अछि तें काशी प्रसाद जायसवाल रिसर्च इन्सिटीच्यूटक शोध पत्रिका आ राजेश्वर झा द्वारा प्रकाशित शिलालेखक इंकस्टम्पेज सभसँ प्रामाणिक अछि।

शिलालेखक इंकस्टम्पेज

एकर दोसर पंक्तिक 9-10म अक्षर क्ष एवं त्र के रूपमे पढल जा सकैत अछि जकरा परमेश्वर झा म एवं न्त्र के रूपमे पढने रहथि। वस्तुतः एकर पहिल पंक्तिक तेसर अक्षर ‘म’ अछि जेकरा संग दोसर पंक्तिक नवम अक्षर एकदम भिन्न अछि आ तें एकरा ‘क्ष’ पढब उचित थीक। मुदा एतहि 12म अक्षर कें सत्यनारायण झा ‘श’ मानैत छथि जे उचित नहि बुझाइत अछि। कारण जे एहि आकृतिक नीचाँमे जे अंश अछि से ‘श’ मे नहिं होएत (मिलाउ पहिल पंक्तिक श्री अक्षर)। संगहि व अक्षरक ऊपर अनुस्वार सेहो नहि छैक। तखनि ई अक्षर ‘ङ्ग’ अवश्य थीक। एहि अक्षर कें परमेश्वर झा वेसी नीक जकाँ चिन्हने छथि। तखनि ई चारू अक्षर ‘क्षत्रवङ्गाब्ज’ अथवा ‘क्षत्ररङ्गाब्ज’ पढल जेबाक चाही। ‘क्षत्रवङ्ग’ कें जँ कोनो स्थान मानी तँ इहो पाठ संगत भए सकैत अछि मुदा ‘क्षत्ररङ्गाब्जभानुना’ क अर्थ होएत क्षत्रियक रङ्गभूमि अर्थात् “युद्धभूमिमे फुलाएल कमल कें विकसित कएनिहार।” एहिसँ अर्थ निकालल जा सकैत अछि जे नान्यदेवक मन्त्री श्रीधर अप्रतिम योद्धा रहथि आ हुनक सहायतासँ नान्यदेवरूपी कमल विकसित भेल छल। संगहि श्रीधर स्वयं सेहो क्षत्रिय रहथि सेहो कोनो असंभव नहि, ओना एहि पाठमे स्पष्ट निर्देश नहि अछि। जँ सत्यनारायण झाक पाठ मानल जाए तँ हुनक क्षत्रिय होएबाक स्पष्ट निर्देश सेहो अछि। सभ प्रकारें ई शिलालेख नान्यदेवक आरम्भिक विजयक संकेत करैत अछि। ध्यातव्य जे कल्चरल हेरिटेज ऑफ मिथिलामे जयकान्त मिश्र सेहो “क्षत्रवंशाब्जभानुना” पाठ मानने छथि। आ तें ई स्पष्ट कहल जा सकैत अछि जे श्रीधर क्षत्रिय छलाह, कायस्थ नहि, आ ओ श्रीधरदाससँ भिन्न छलाह। संगहिं नान्यदेवक पहिल राजधानी अन्धराठाढीमे छल।

म.म. परमेश्वर झा अपन पाठ नवरङ्गाब्जभानुनाक आधार पर लिखैत छथि जे- “नान्य राजाक धीसचिव (देवान, मुन्तजिम मुल्क) बटुदासक बेटा श्रीधरदास नामक रङ्गवाली कायस्थ छलाह। ओ पूर्वमे वल्लाल सेनक भृत्य छलाह। वल्लालसेन के हुनका प्रसंग संशय भेलैन्ह जे पुत्र लक्ष्मणसेनसँ विरोध करावय चाहैत छथि, तें अपना ओहिठामसँ निकालि देलथीन्ह, तखन नान्य राजाक शरणमे अयलाह। हिनक स्थापित कमलादित्य नामक विष्णुमूर्ति अन्धराठाढी गाम प्रगन्ना जबदीमे छथि।“ (पृ. 103)

एतय कालक्रम निर्धारणमे नान्यदेवक सिमरौनगढक वास्तुसम्बन्धी शिलालेख उद्धृत करब प्रासंगिक होएत। म.म. परमेश्वर झा सेहो सिमरौन गढक एहि शिलालेखक पाठ एहि प्रकारें देने छथि-

नन्देन्दुबिन्दुविधुसम्मितशाकवर्षे

सच्छ्रावणे सितदले मुनिसिद्धितिथ्याम्

स्वा(ती)तौ शनैश्चरदिने करिवैरिलग्ने

श्रीनान्यदेवनृपतिर्व्यदधीत वास्तुम्।

एहि शिलालेखक अनुसार नान्यदेव शाके 1019 अर्थात् 1096 ई.मे सिमरौनगढक वास्तु लेलनि। एतए हुनका नृपति कहल गेल अछि मुदा अन्धराठाढीक विष्णुमूर्ति अभिलेखमे हुनका जेता कहल गेल अछि। नान्यदेव वंगालक दिससँ आएल छलाह जे स्पष्ट अछि तखनि इहो मानल जाएत जे ओ पूव देससँ मिथिलाकें जितैत सुदूर पश्चिंम पहुँचि सिमरौन गढमे अपनाकें राजा घोषित कएल आ राजधानीक लेल वास्तु लेलनि। अर्थात् सिरौनगढक वास्तु लेबाक घटनासँ पहिनहि अंधराठाढीमे ओ अपन जडि जमा चुकल छलाह। तें ई मानब अनुचित नहि जे 1096 सँ किछु पहिनहि एहि कमलादित्य स्थानक मूर्ति स्थापित भेल।

मिथिलातत्त्वविमर्शक पहिल संस्करण जे 1949 ई. मे श्रीहरिश्चन्द्र झा प्रकाशित कएलनि ओकर पाद-टिप्पणी सेहो एकटा भ्रान्ति उत्पन्न कएलक। ओहि पाद-टिप्पणीमे श्रीधरदासक परिचयमे कहल गेल जे ओ सूक्तिकर्णामृत (सदुक्तिकर्णामृत) नामक सुभाषित ग्रन्थक संकलन कर्ता थिकाह। सदुक्तिकर्णामृत ग्रन्थक पुष्पिकाक उल्लेख करैत ओतहि हुनक काल निर्धारण तँ कएल गेल मुदा ई ध्यान नहि देल गेल जे दूनू तिथिमे कतेक अंतर अछि। सदुक्तिकर्णामृतक पुष्पिकामे कहल गेल अछि-

शाके तु सप्तविंशत्यधिकशतोपेतदशशते शरदाम्।

श्रीमल्लक्ष्मणसेनक्षितिपस्य रसैकयुतकत्रिंशे।।

श्रीधरदासेनेदं सूक्ति(सदुक्ति) कर्णामृतं चक्रे।।

अर्थात् शाके 127+1000 अर्थात्1127 आ लक्ष्मण संवत् 37 मे श्रीधरदास सदुक्तिकर्णामृत बनाओल। इहो द्रष्टव्य थिक जे लक्षमणसेनक पिता वल्लालसेनक अद्भुतसागर ग्रन्थक आधार पर हुनक राज्यारोहण काल 1082 शाके थिक हुनक पुत्र लक्ष्मणसेनक द्वारा चलालोल संवतक 37म वर्षमे श्रीधर दास सदुक्ति कर्णामृत लिखलनि जे सभटा नान्यदेवक कालक परवर्ती घटना थिक। नान्यदेवक सिमरौन गढक शिलालेखक तिथि शाके 1019 सँ ई तिथि 126 वर्षक बादक थिक। तें दूनू श्रीधर एके थिकाह से असम्भव अछि। आ 1019 शाके सँ पूर्वहि अन्धराठाढीमे सेहो ओएह श्रीधर कमलादित्य स्थानक मूर्ति स्थापित कएने हेताह से तँ आरो असम्भव अछि। तें सदुक्तिकर्णामृतकार श्रीधरदास आ अन्धराठाढीक श्रीधर दूनू भिन्न व्यक्ति थिकाह से निश्चय होइत अछि। संगहि श्रीधर कायस्थ रहथि से एतय कोनो उल्लेख नहि अछि।

तारामूर्ति अभिलेख

अंधराठाढी गामक सुखाएल सरखरा पोखरि मे भूतल सँ प्रायः 10 फीट नीचाँ जे.सी.बी. मशीन द्वारा माँटि काटल जेबाक क्रम मे दिनांक 11 फरवरी, 2016 कें ताराक एक मूर्ति भेटल जेकरा ग्रामीणलोकनि गामक प्राचीन दुर्गास्थान परिसरमे अवस्थित राधाकृष्ण मन्दिर मे रखलनि। 27× 20 इंचक एहि मूर्तिक पादपृष्ठ पर 7×15 इंच स्थान पर तीन पंक्तिक एक मूर्तिलेख अछि।

तारामूर्ति अभिलेख, अन्धराठाढी एहि अभिलेखक लिपि मिथिलाक्षर अछि, जे लिपिक दृष्टि सँ नान्यदेवक कालक थिक। अंधराठाढ़ी सँ प्राप्त 1096 ईस्वीसँ किछु पहिलुक श्रीधरक अभिलेख सँ लिपि समान अछि। दूनू मे ‘भ’ अक्षर अपन प्राचीनतम रूपमे अछि, जे बादमे मिथिलाक्षरमे बदलि गेल अछि। एहि प्रकारें अभिलेखक काल 11-12म शतीक मानल जा सकैत अछि।

पाठ

ओम् ये धर्म्मा हेतुप्रभवा हेतुं तेषां तथागतोह्यवदत्तेषां च यो

निरोध एवं वादी महाश्रमणः।। देयधर्म्मोयं प्रवरमहा

यान++[प्रका]रः प्रव+]र्त्त]नपुरराज्ये सुधाविहारे भगवते दत्तः।

तारामूर्ति अभिलेख

अनुवाद- जे कार्य कोनो कारणें होइत अछि ओ कारण तँ तथागतक द्वारा कहल गेल अछि। मुदा ओकरा रोकबाक उपाय जे अछि ओ महाश्रमण एवंप्रकारें कहलनि। ई कबुला प्रवर्त्तनपुर (?) राज्यमे सुधाविहारमे भगवान् महाश्रमण कें श्रेष्ठ महायानक अनुरूप देल गेल।

एहि अभिलेख मे प्रसिद्ध बौद्धमन्त्रक उल्लेख भेल अछि तथा मूर्ति पर दाहिना कात ध्यानी बुद्धक अंकन अछि। एहिसँ स्पष्ट अछि जे बौद्ध महायान मे पूजित ताराक ई मूर्ति थिक। ताराक एकटा रूप सनातन धर्ममे सेहो पूजित अछि, मुदा ओ शवासना तारा थिकीह। एतए महायानक ताराक रूप भेटैत अछि। मूर्ति देखलासँ ई प्रथम दृष्ट्या खदिरवनीक श्याम अथवा हरित ताराक रूप अछि।

एहि मूर्तिलेखमे दू स्थानसूचक शब्द प्रवर्तनपुर राज्य एवं सुधाविहारक उल्लेख भेल अछि। प्रवर्त्तनपुर कें आधुनिक पस्टनक संग जोड़ल जा सकैत अछि, जतए अवस्थित बौद्ध-स्तूपक अवशेष कें सुधाविहारक संग सम्बद्ध कएल जा सकैत अछि, किन्तु एकरा लेल अग्रेतर शोधक आवश्यकता छैक। जा धरि पस्टनक मुसहरनिया डीहक खुजाइ नहि होइत अछि आ ओतए सँ सुधाविहारक कोनो लिखित साक्ष्य उपस्थित नहिं होइत अछि ता धरि एकरा प्रामाणिक नहिं मानल जाएत। ई मात्र शोधक दिशाक संकेत करैत अछि।

एतए इहो संदेह भए सकैत अछि जे पस्टन सँ सरखरा पोखरि मे ई मूर्ति केना आएल? प्राचीन कालमे जखनि मूर्ति खण्डित भए जाइत छल तँ विधानपूर्वक ओकर विसर्जन करबाक परम्परा छल। विसर्जनक क्रममे शोभायात्रा निकालि ओकरा गाममे घुमाओल जाइत छल आ कोनो पोखरिमे जलप्रवाह कए देल जाइत छलैक।

परवर्ती कालमे विधर्मी आक्रान्तासँ मूर्ति कें बचयबाक लेल ओकरा पोखरिमे राखि देबाक काज सेहो कएल गेल अछि।

बौद्ध महायानक परम्परा रहल अछि जे कबुला पूर्ण भेला पर कोनो विहारक महाश्रमणक देखरेख मे मूर्ति बनाओल जाइत छल, ओहि मूर्तिक विशेष पूजा होइत छल। एहि पूजामे यजमान प्रचुर धनक संग ओहि पूजित प्रतिमाकें ओही विहारमे दान कए दैत छलाह। एकरा देयधर्म कहल गेल अछि। ई देयधर्म शब्द कुषाणकालहि सँ भेटैत अछि। महिषीक उग्रतारा स्थान सँ सेहो एहि प्रकारक एक खण्डित मूर्ति भेटल अछि।

कमलादित्यस्थान पर म.म. परमेश्वर झा कें एकटा लेख भेटल रहनि जकर उल्लेख ओ मिथिलातत्त्वविमर्श मे कएने छथि- “एकर एक स्तम्भमे “मगरधज जोगी 700” एतबा लेख अछि। एर्थात् मकरध्वज योगी, परन्तु सात सय 700 अङ्कक अभिप्राय स्पष्ट प्रतीत नहि भयसकैत अछि।“ ई स्तम्भ वर्तमानमे नहि भेटैत अछि। प्रायः नव निर्मित मन्दिरमे जे दूनू कात स्तम्भ लगा देल गेल अछि ताहिमे ओ दिवालक संग झँपाए गेल हो। परमेश्वर झा सेहो एतए बौद्धसंघक संकेत कएने छथि जे निराधार आ असंगत नहि अछि। एहन स्थान सभ बौद्ध महायानक साधना स्थल रहल अछि।

एहि प्रकारें स्पष्ट अछि जे अन्धराठाढी शिलालेखक आलोकमे सेहो महत्तवपूर्ण अछि। एहि ठामक लेख सभक संरक्षण होएबाक चाही। कमलादित्यस्थानमे किछु स्तम्भसभ ओंघराएल अछि ओकर उचित संरक्षण होएब आवश्यक। संगहि ओकर चारूकात कोनो कोडल नै जाए से सुनिश्चित करब आबश्यक। एकर दक्षिणमे जे हालहिमे मन्दिरक निर्माण भेल अछि ताहि क्रममे पुरातात्त्विक सामग्रीक नष्ट होएबाक संभावनाकें नकारल नै जा सकैत अछि।

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